Home धर्म बसंत पंचमी का इस देवता से जुड़ा है गहरा नाता… चढ़ाया जाता है तिलक
Full-Size Image Full-size image

बसंत पंचमी का इस देवता से जुड़ा है गहरा नाता… चढ़ाया जाता है तिलक

by News Desk

बसंत पंचमी के दिन पूरे देश भर में भक्त ज्ञान, विद्या, कला की देवी माता सरस्वती की प्रतिमा या फोटो लगाकर पूजा आराधना करते हैं. वहीं देवघर के लिए बसंत पंचमी का दिन बेहद खास रहता है. खास इसलिए, क्योंकि यहां पर माता सरस्वती की तो पूजा आराधना की ही जाती है, इसके साथ ही भगवान भोलेनाथ का तिलक भी चढ़ता है. जी हां! शादी विवाह से पहले जो तिलक की परम्परा है वो निभाया जाता है. माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ का विवाह महाशिवरात्रि के दिन हुआ था और देवघर के बैद्यनाथ मंदिर मे शादी से पहले तिलक की परम्परा बसंत पंचमी के दिन निभाई जाती है. कौन लोग तिलक लगाते है, इसके पीछे क्या है वजह है, जानते है देवघर बैद्यनाथ मंदिर के प्रसिद्ध तीर्थपुरोहित प्रमोद श्रृंगारी जी से…

क्या कहते है बैद्यनाथ मंदिर के तीर्थपुरोहित
देवघर स्थित बैद्यनाथ मंदिर के प्रसिद्ध तीर्थपुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने लोकल 18 के संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा कि सनातन धर्म में शादी से पहले दूल्हे का तिलक चढ़ता है. वही महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ दूल्हा बनते हैं और उसी दिन उनका शादी विवाह संपन्न होता है. लेकिन शादी से पहले भगवान भोलेनाथ का तिलक चढ़ता है ओर देवघर मे बाबा भोलेनाथ का तिलक बसंत पंचमी के चढने वाला है. इस साल बसंत पंचमी 03 फरवरी को है. उस दिन भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा आराधना की जाती है.

बाबा भोलेनाथ ओर मिथिला का संबंध
तीर्थपुरोहित बताते हैं कि बसंत पंचमी के दिन मिथिलावासी तिलकहरुवा की परम्परा निभाते हैं और यह परम्परा सदियों से चलती आ रही है. मिथिलांचल हिमालय की तराई मे बसा हुआ है और माँ पार्वती माँ हिमालय की पुत्री हैं. इस अनुसार जब माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ तो पूरे मिथिलावासी अपने आप को भगवान भोलेनाथ का साला मानते हैं और लाखो की संख्या मे तिलक चढ़ाने देवघर पहुंचते हैं.

कैसे चढ़ाते है तिलक
तीर्थपुरोहित प्रमोद श्रृंगारी बताते है कि बसंत पंचमी के दिन लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. मिथिला से देसी घी ओर मालपुवा बनाकर लाते हैं और बाबा भोलेनाथ को अर्पण करते हैं. इसके साथ ही श्रृंगार के वक़्त तीर्थपुरोहित उस दिन से भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के ऊपर अबीर, नये धान की बाली, आम का मंजर इत्यादि अर्पण करते हैं. यह परम्परा करीब डेढ़ महीने तक हरीहरण मिलन तक निभाई जायेगी.

You may also like